एक गाँव में एक धनीराम नाम का व्यक्ति रहता था। वह सिर्फ़ नाम का ही धनी था। उसके आर्थिक जीवन में बहुत सी समस्याएँ थी। वह इतना निर्धन था, कि कई बार उसे बिना कुछ खाए पिए ही सोना पड़ता था। लेकिन फिर भी वह किसी से कुछ नहीं माँगता था। वह रोज़ सुबह अपने घर से निकलता और कोई न कोई छोटा मोटा काम करके अपना जीवन यापन करता। वह अकेला था। इस वजह से उसका ख्याल रखने वाला भी कोई नहीं था। एक दिन वह रोज़ाना की तरह अपने घर लौट रहा था। रास्ते में उसे जादू दिखाने वाला आदमी दिखता है। उसके चारों तरफ़ बहुत से लोगों की भीड़ होती है। धनीराम भी लोगों के बीच में जाकर खड़ा हो जाता है। तभी जादूगर अचानक धनीराम को आगे आने को कहता है। धनीराम डरते हुए आगे बढ़ता है। जादूगर धनीराम से पूछता है। “तुम्हारे जेब में कितने पैसे हैं” धनीराम चिल्लर पैसे निकालकर जादूगर को दिखाता है। तभी जादूगर रुमाल फैलाकर धनीराम से पैसे डालने को कहता है। धनीराम ने सारे दिन की मेहनत के बाद इतने ही पैसे इकट्ठे किये थे, इसलिए वह देना नहीं चाहता। लेकिन फिर भी संकोच के कारण अपने पैसे जादूगर को दे देता है और जादूगर उन पैसों को रूमाल में दबाकर बीच में रख देता है। सभी दर्शक जादू देखने में मसरूफ़ हो जाते हैं। लेकिन धनीराम की नज़र केवल उस रूमाल मैं होती है। उसे लगता है। अब मेरे पैसे मिलेंगे भी या नहीं है ? थोड़ा देर के बाद जादू का खेल ख़त्म हो जाता है और सभी लोग वहाँ से जाने लगते हैं। लेकिन धनीराम जादूगर से अपने पैसे वापस लेने के लिए इंतज़ार करता रहता है। तभी जादूगर को जाता देख धनीराम आवाज़ लगाता है। “मेरे पैसे” लेकिन जादूगर बिना कुछ जवाब दिए आगे बढ़ता ही जाता है। धनीराम बहुत सहज व्यक्ति होता है, इसलिए वह जादूगर के पीछे नहीं भागता। उसे लगता है जादूगर ने उसे बेवक़ूफ़ बनाया है और वह दुखी मन से अपने घर वापस आ जाता है। धनी राम घर आकर जैसे अपने कुर्ते की जेब में हाथ डालता है, तो उसे वही जादूगर का रुमाल मिलता है। जिसमें धनीराम ने पैसे रखे थे और जैसे ही धनी राम रूमाल खोलता है। उसके पैसे दोगुने हो चुके होते हैं। धनीराम ख़ुशी से उछल पड़ता है। उसके लिए तो उसके पैसे ही बहुत थे। लेकिन रुमाल मैं दुगने पैसे मिलने से उसकी ख़ुशी भी दोगुनी हो जाती है। धनीराम जल्दी से पैसे निकालकर रुमाल को नीचे फेंक देता है और जल्दी से खाना बनाने में लग जाता है। धनीराम बहुत ख़ुश होता है, इसलिए जल्दी खा पीकर सो जाता है। सुबह उठकर है, जैसे ही वह जूते पहनने के लिए नीचे झुकता है। वह देखकर दंग रह जाता है। उसके पास तीन जूते हो चुके होते हैं। दरअसल रात को जो रूमाल धनीराम ने फेंका था। वह जूतों के ऊपर जा गिरता है और रुमाल की शक्ति की वजह से एक और जूता अतिरिक्त बन जाता है। धनीराम को यह चमत्कार समझ नहीं आता, इसलिए वह अपने दूसरे जूते को भी रूमाल से ढक देता है और जैसे ही वह रुमाल हटाता है। एक और अतिरिक्त जूता बन जाता है। धनीराम अपने खेत में बाहर बैठ कर सोचने लगता है अब मैं अमीर बन जाऊंगा |

वह रुमाल की चमत्कारी शक्ति को समझ जाता है और अब उसके दिमाग़ में लालच जन्म ले लेता है। वह सोचता है कि क्यों न मैं इससे सोने की अशर्फ़ियों को दोगुना करूँ और धनवान बन जाऊँ। धनीराम योजनाबद्ध तरीक़े से सुनार की दुकान जाता है और वहाँ सोने के सिक्के देखने को माँगता है और जैसे ही वह अपने रुमाल में सिक्के रखता है। वह दो गुना हो जाते हैं। सुनार यह देखकर विचलित हो जाता है। वह धनीराम से रूमाल का रहस्य जानना चाहता है। लेकिन धनीराम मुस्कुराते हुए उसके दुकान से अतिरिक्त सोने के सिक्के लेकर चला जाता है। धनीराम के जाते ही सुनार के दिमाग़ में उथल पुथल होने लगती है। वह यह बात उसी राज्य के राजा तक पहुँचा देता है और राजा जैसे ही यह बात जानता है। वह धनीराम को गिरफ़्तार करवा कर महल बुलवाता है और धनीराम से उसका रुमाल छीन लिया जाता है और राजा जैसे ही रूमाल का परीक्षण करने के लिए उसमें स्वर्ण अशर्फ़ियाँ रखता है और कुछ देर मैं रूमाल खोलता है, लेकिन रुमाल में केवल उतनी ही अशर्फ़ियाँ रखी होती है। जितनी राजा ने रखी थी। राजा धनीराम और सुनार दोनों से पूछता है “तुम लोग तो कह रहे थे, कि रूमाल में कोई भी वस्तु रखने से वह दोगुना होती है, लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं हुआ। तुम लोगों ने झूठ बोलकर दरबार का अपमान किया है, इसलिए दोनों को सज़ा मिलेगी”।

राजा धनीराम और सुनार दोनो को कारागार में डलवा देता है और उस रूमाल को नदी में बहा दिया जाता है। धनीराम कारागार में बैठे हुए दुखी होता है और सोचता है। यदि मैं लालच न करता, तो आज वह रुमाल मेरे पास होता धनीराम की लाचारी के साथ, यह कहानी समाप्त हो जाती है।